व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> प्रेम की पाँच भाषाएँ प्रेम की पाँच भाषाएँगैरी चैपमैन
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समस्या यह नहीं है कि आप दोनों में प्रेम नहीं है–समस्या यह है कि दोनों की प्रेमभाषा अलग-अलग है !
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
आपके पति आपको फूलों का तोहफा देते हैं, जबकि
आप दरअसल यह
चाहती हैं कि वे आपसे बातें करें। आपकी पत्नी आपका आलिंगन करती है, जबकि
आप दरअसल यह चाहते हैं कि वह आपको घर पर बना लज़ीज़ खाना खिलाए। समस्या यह नहीं है कि आप दोनों में प्रेम नहीं है–समस्या यह है कि दोनों
की प्रेमभाषा अलग-अलग है !
इस अंतर्राष्ट्रीय बेस्टसेलर में डॉ. गैरी चैपमैन बताते हैं कि अलग-अलग लोग अपने प्रेम का अलग-अलग इज़हार कैसे करते हैं। कुल मिलाकर प्रेम की पाँच स्पष्ट भाषाएँ होती हैं :
*प्रतिबद्ध समय
*सकारात्मक शब्द
*उपहार
*सेवा के कार्य
*शारीरिक स्पर्श
यह हो सकता है कि जो आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण हो, वह आपके जीवनसाथी के लिए बिलकुल अर्थहीन हो। परंतु आख़िरकार अब इस पुस्तक को पढ़कर आप एक-दूसरे की अनूठी आवश्यकताओं को समझ सकते हैं। इस पुस्तक में प्रेम की कुंजी है। सही सिद्धांतों पर अमल करने और सही भाषा सीखने से जल्दी ही आपको प्रेम की गहन संतुष्टि का अहसास होगा। आपको अपने प्रेम की सार्थक अभिव्यक्ति का सुख तो मिलेगा ही, साथ ही जीवन साथी का ढेर सारा प्रेम भी मिलेगा।
इस अंतर्राष्ट्रीय बेस्टसेलर में डॉ. गैरी चैपमैन बताते हैं कि अलग-अलग लोग अपने प्रेम का अलग-अलग इज़हार कैसे करते हैं। कुल मिलाकर प्रेम की पाँच स्पष्ट भाषाएँ होती हैं :
*प्रतिबद्ध समय
*सकारात्मक शब्द
*उपहार
*सेवा के कार्य
*शारीरिक स्पर्श
यह हो सकता है कि जो आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण हो, वह आपके जीवनसाथी के लिए बिलकुल अर्थहीन हो। परंतु आख़िरकार अब इस पुस्तक को पढ़कर आप एक-दूसरे की अनूठी आवश्यकताओं को समझ सकते हैं। इस पुस्तक में प्रेम की कुंजी है। सही सिद्धांतों पर अमल करने और सही भाषा सीखने से जल्दी ही आपको प्रेम की गहन संतुष्टि का अहसास होगा। आपको अपने प्रेम की सार्थक अभिव्यक्ति का सुख तो मिलेगा ही, साथ ही जीवन साथी का ढेर सारा प्रेम भी मिलेगा।
अध्याय : १
शादी के बाद प्रेम कहाँ चला जाता है ?
दस हज़ार फुट की ऊँचाई पर बफ़ैलो और डलास के बीच कहीं पर उसने अपनी पत्रिका बंद की और मेरी तरफ़ मुड़कर पूछा, ‘आप क्या करते हैं ?’’
मैंने सहज भाव से जवाब दिया, ‘मैं विवाह संबंधी परामर्श देता हूँ और विवाह को बेहतर बनाने के लिए सेमिनार आयोजित करता हूँ।’
‘मैं काफ़ी समय से किसी से यह सवाल पूछना चाहता था,’ उसने कहा, ‘और मुझे लगता है कि आज मुझे यही व्यक्ति मिल गया है। मेरा सवाल यह है कि शादी के बाद हमारा प्रेम कहाँ चला जाता है ?’’
मैंने झपकी लेने की अपनी आशाओं को त्यागते हुए उससे पूछा, ‘आप कहना क्या चाहते हैं ?’
उसने जवाब दिया, ‘मैंने तीन बार शादी की है और हर बार शादी से पहले मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं जन्नत में हूँ। न जाने ऐसा क्या हुआ, क्यों हुआ कि शादी के बाद सब कुछ बिखर गया। हमारे दिल में एक-दूसरे के लिए जो ढेर सारा प्यार था वह शादी के कुछ समय बाद काफ़ूर हो गया। मुझमें भी सामान्य बुद्धि है और मैं एक सफल बिज़नेसमैन हूँ पर मेरी समझ में यह बात नहीं आती है कि शादी के बाद प्रेम क्यों ख़त्म हो जाता है।’
‘आपकी शादी कितने समय तक चली ?’ मैंने सवाल किया।
‘पहली शादी दस साल तक चली। दूसरी तीन साल और तीसरी लगभग छह साल तक।’
‘क्या शादी के तत्काल बाद आपका प्रेम काफ़ूर हो गया या यह धीरे-धीरे कम होता गया ?’ मैंने पूछा।
‘दूसरी शादी में तो शादी के तत्काल बाद ही प्रेम हवा हो गया। मुझे नहीं मालूम कि यह सब कैसे हुआ। उस समय तो मुझे यही एहसास था कि हम एक-दूसरे से बेपनाह मुहब्बत करते हैं पर हनीमून के दौरान ही हमारा विवाह ध्वस्त हो गया और हम उस झटके से कभी उबर नहीं पाए। हमने सिर्फ़ छह महीने तक डेटिंग की थी और हमारा रोमांस तूफ़ानी था। शादी से पहले हमारा रोमांस बेहद रोमांचक और मजे़दार था। पर शादी के बाद तो ऐसा लग रहा था मानों हम दो दुश्मन देश हों और हममें जंग छिड़ गई हो।
‘मेरी पहली शादी में हमारी ज़िंदगी तीन-चार सालों तक बहुत सुखद रही, जब तक कि हमारे यहाँ बच्चा नहीं हुआ। बच्चा होने के बाद मुझे ऐसा लगने लगा कि उसका सारा ध्यान बच्चे पर केंद्रित हो गया है और अब उसे मेरी क़तई ज़रूरत नहीं है। ऐसा लग रहा था मानो बच्चा पाना ही उसके जीवन का एकमात्र लक्ष्य था और बच्चे के बाद उसे मेरी कोई ज़रूरत नहीं रह गई थी।’
‘क्या आपने अपनी पत्नी को यह बताया था ?’, मैंने पूछा।
‘हाँ, मैंने उसे यह बताया था। पत्नी का कहना था कि मैं फ़ालतू की बात कर रहा हूँ। उसने यह भी कहा कि मैं उसके तनाव को समझ ही नहीं पा रहा हूँ जबकि वह 24 घंटे किसी नर्स की तरह बच्चे की देखभाल कर रही है। उसने कहा कि मुझे उसकी ज़्यादा मदद करनी चाहिए, उसकी हालत को अच्छी तरह से समझना चाहिए। मैंने वास्तव में ऐसा करने की कोशिश की, पर उससे कोई ख़ास फ़र्क नहीं पड़ा। उसके बाद हम धीरे-धीरे एक-दूसरे से दूर होते चले गए। कुछ समय बाद हमारे बीच लहलहाता प्रेम का वृक्ष सूख चुका था, मृतप्रायः हो चुका था। एक वक़्त ऐसा आया जब हम दोनों सहमत हो गए कि हमारी शादी ख़त्म हो चुकी है और हमें अलग हो जाना चाहिए।’
‘मेरी आख़िरी शादी ? मुझे ऐसा लगता था कि यह बिलकुल अलग होगी। मेरा तलाक़ हुए तीन साल हो चुके थे। हमने दो सालों तक एक-दूसरे के साथ डेटिंग की। मुझे सचमुच लग रहा था कि हम दोनों एक-दूसरे को पूरी तरह समझ चुके थे और शायद पहली बार मैं प्रेम का मतलब समझ रहा था। मेरा दिल कह रहा था कि वह मुझसे बेपनाह मुहब्बत करती है।
‘शादी के बाद मुझे नहीं लगा कि मुझमें कोई बदलाव आया था। मैं उससे पहले की तरह प्रेम का इज़हार करता रहा। मैं पहले की तरह उसकी सुंदरता की तारीफ़ करता रहा, यह बताता रहा कि मैं उससे कितना ज़्यादा प्यार करता था, कि मुझे उसका पति होने में गर्व का अनुभव होता है। पर शादी के कुछ महीनों बाद ही उसने शिकायत करना शुरू कर दिया–पहले तो छोटी-छोटी बातों पर–जैसे घर का कचरा बाहर नहीं फेंकने या अपने कपड़े नहीं टाँगने पर। बाद में उसने मेरे चरित्र पर उँगली उठाना शुरू कर दी और यह भी कहा कि उसका मुझ पर से भरोसा उठ गया है। उसने मुझ पर यह आरोप भी लगाया कि मैं उसके प्रति वफ़ादार नहीं था। उसका व्यक्तित्व अब पूरी तरह नकारात्मक हो गया था, जबकि शादी से पहले वह जरा भी नकारात्मक नहीं थी। उस समय वह बहुत सकारात्मक थी। उसके इसी गुण ने मुझे उसके इतने क़रीब ला दिया था। तब वह कभी किसी विषय पर शिकायत नहीं करती थी, कभी आलोचना नहीं करती थी। शादी से पहले मैं जो भी करता था, उसे बेहतरीन लगता था, पर शादी के बाद मैं जो भी करता था उसमें वह कमी ढूँढ़ ही लेती थी। मैं नहीं जानता कि क्या हुआ ? पर आख़िरकार उसके प्रति मेरा प्रेम धीरे-धीरे ख़त्म हो गया और नफ़रत में बदल गया। जाहिर था कि मेरे प्रति उसका प्रेम पहले ही ख़त्म हो चुका था। हम दोनों सहमत थे कि हमारे एक साथ रहने से अब कोई फ़ायदा नहीं है, इसलिए हम अलग हो गए।
‘यह एक साल पहले की बात है। अब मेरा सवाल यह है कि शादी के बाद हमारे प्रेम का क्या हुआ ? क्या जो मेरे साथ हुआ है वह सभी के साथ होता है ? क्या इसी कारण हमारे देश में इतने ज़्यादा तल़ाक होते हैं ? मुझे यक़ीन नहीं होता कि ऐसा मेरे साथ तीन बार हुआ। और वे लोग जिनके तलाक़ नहीं होते क्या वे बिना प्रेम के जीना सीख लेते हैं या कई शादियों में प्रेम वाक़ई ज़िंदा रह पाता है ? अगर शादी के बाद भी प्रेम बचा रह सकता है तो कैसे ?’’
हवाई जहाज़ में बैठा दोस्त मुझसे जो सवाल पूछ रहा था वह सवाल आज हज़ारों तलाक़शुदा लोग पूछ रहे हैं ? कुछ अपने दोस्तों से यह सवाल पूछ रहे हैं, कुछ परामर्शदाताओं तथा धर्मगुरुओं से और कुछ अपने आप से। कई बार जवाब मनोवैज्ञानिक शोध की तकनीकी शब्दावली में लिपटे होते हैं और उन्हें समझना लगभग असंभव होता है। कई बार जवाब मज़ाक़ में या कहावतों में दिए जाते हैं। ज़्यादातर जवाब चुटकुलों और कहावतों में दिए जाते हैं और इनमें कुछ हक़ीक़त तो निश्चित रूप से होती है पर यह उसी तरह की बात हो गई जैसे हम कैंसर से पीड़ित मरीज को एस्पिरीन दे दें।
शादी में रोमांस और प्रेम की आकांक्षा की जड़ हमारी मनोवैज्ञानिक संरचना में होती है। लगभग सभी लोकप्रिय पत्रिकाओं के हर संस्करण में कम से कम एक लेख इसी विषय पर होता है कि विवाह में प्रेम को ज़िंदा कैसे रखा जाए ?
इस विषय पर ढेरों पुस्तकें भी छप चुकी हैं। टेलीविज़न और रेडियो पर इस बारे में नियमित रूप से कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं। इस सबसे हम यह सहज अनुमान लगा सकते हैं कि हमारी शादियों में प्रेम की ज़िंदा रखना एक गंभीर समस्या है, और यह अकेले हमारी समस्या नहीं है बल्कि आधुनिक समाज की एक प्रमुख समस्या है।
ऐसा क्यों है कि इतनी सारी पुस्तकों, पत्रिकाओं और व्यावहारिक सहायता के बावज़ूद बहुत कम लोगों को यह रहस्य पता है कि विवाह के बाद प्रेम को ज़िंदा कैसे रखा जाए ? ऐसा क्यों होता है कि एक दंपति किसी कम्युनिकेशन वर्कशॉप में भाग लेने जाते हैं, वहाँ पर प्रेम बढ़ाने के अद्भुत नुस्ख़ों को सुनते हैं परंतु घर लौटने पर वे यह महसूस करते हैं कि वे इन नायाब नुस्ख़ों और अद्भुत तकनीकों को अपनी ज़िंदगी में नहीं उतार सकते ? ऐसा क्यों होता है कि हम एक पत्रिका में छपे लेख ‘अपने जीवनसाथी के प्रति प्रेम अभिव्यक्त करने के 101 तरीक़े’ में से दो या तीन तरीक़े चुनते हैं जो हमें ख़ास तौर पर असरदार लगते हैं, उन्हें अपनाने की कोशिश करते हैं पर इतना सब करने के बावजूद हमारे जीवनसाथी को हमारी कोशिश का पता तक नहीं चलता ? इस दुर्घटना के बाद हम बाक़ी 98 तरीक़ों को ज्यों का त्यों छोड़ देते हैं और ज़िंदगी पहले की तरह ही चलती रहती है।
अगर हमें प्रेम में प्रभावी वक्ता बनना है तो अपने जीवनसाथी की प्राथमिक प्रेम भाषा सीखने के लिए तैयार रहना चाहिए।
इन सवालों का जवाब ढूँढ़ना ही इस पुस्तक का लक्ष्य है। ऐसा नहीं है कि पहले जो पुस्तकें या लेख छपे हैं, वे इस दिशा में मदद नहीं करते। हमारी समस्या यह है कि हम इस मूलभूत सत्य को नज़र अंदाज़ कर देते हैं कि लोग अलग-अलग प्रेमभाषाएँ बोलते हैं।
दस हज़ार फुट की ऊँचाई पर बफ़ैलो और डलास के बीच कहीं पर उसने अपनी पत्रिका बंद की और मेरी तरफ़ मुड़कर पूछा, ‘आप क्या करते हैं ?’’
मैंने सहज भाव से जवाब दिया, ‘मैं विवाह संबंधी परामर्श देता हूँ और विवाह को बेहतर बनाने के लिए सेमिनार आयोजित करता हूँ।’
‘मैं काफ़ी समय से किसी से यह सवाल पूछना चाहता था,’ उसने कहा, ‘और मुझे लगता है कि आज मुझे यही व्यक्ति मिल गया है। मेरा सवाल यह है कि शादी के बाद हमारा प्रेम कहाँ चला जाता है ?’’
मैंने झपकी लेने की अपनी आशाओं को त्यागते हुए उससे पूछा, ‘आप कहना क्या चाहते हैं ?’
उसने जवाब दिया, ‘मैंने तीन बार शादी की है और हर बार शादी से पहले मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं जन्नत में हूँ। न जाने ऐसा क्या हुआ, क्यों हुआ कि शादी के बाद सब कुछ बिखर गया। हमारे दिल में एक-दूसरे के लिए जो ढेर सारा प्यार था वह शादी के कुछ समय बाद काफ़ूर हो गया। मुझमें भी सामान्य बुद्धि है और मैं एक सफल बिज़नेसमैन हूँ पर मेरी समझ में यह बात नहीं आती है कि शादी के बाद प्रेम क्यों ख़त्म हो जाता है।’
‘आपकी शादी कितने समय तक चली ?’ मैंने सवाल किया।
‘पहली शादी दस साल तक चली। दूसरी तीन साल और तीसरी लगभग छह साल तक।’
‘क्या शादी के तत्काल बाद आपका प्रेम काफ़ूर हो गया या यह धीरे-धीरे कम होता गया ?’ मैंने पूछा।
‘दूसरी शादी में तो शादी के तत्काल बाद ही प्रेम हवा हो गया। मुझे नहीं मालूम कि यह सब कैसे हुआ। उस समय तो मुझे यही एहसास था कि हम एक-दूसरे से बेपनाह मुहब्बत करते हैं पर हनीमून के दौरान ही हमारा विवाह ध्वस्त हो गया और हम उस झटके से कभी उबर नहीं पाए। हमने सिर्फ़ छह महीने तक डेटिंग की थी और हमारा रोमांस तूफ़ानी था। शादी से पहले हमारा रोमांस बेहद रोमांचक और मजे़दार था। पर शादी के बाद तो ऐसा लग रहा था मानों हम दो दुश्मन देश हों और हममें जंग छिड़ गई हो।
‘मेरी पहली शादी में हमारी ज़िंदगी तीन-चार सालों तक बहुत सुखद रही, जब तक कि हमारे यहाँ बच्चा नहीं हुआ। बच्चा होने के बाद मुझे ऐसा लगने लगा कि उसका सारा ध्यान बच्चे पर केंद्रित हो गया है और अब उसे मेरी क़तई ज़रूरत नहीं है। ऐसा लग रहा था मानो बच्चा पाना ही उसके जीवन का एकमात्र लक्ष्य था और बच्चे के बाद उसे मेरी कोई ज़रूरत नहीं रह गई थी।’
‘क्या आपने अपनी पत्नी को यह बताया था ?’, मैंने पूछा।
‘हाँ, मैंने उसे यह बताया था। पत्नी का कहना था कि मैं फ़ालतू की बात कर रहा हूँ। उसने यह भी कहा कि मैं उसके तनाव को समझ ही नहीं पा रहा हूँ जबकि वह 24 घंटे किसी नर्स की तरह बच्चे की देखभाल कर रही है। उसने कहा कि मुझे उसकी ज़्यादा मदद करनी चाहिए, उसकी हालत को अच्छी तरह से समझना चाहिए। मैंने वास्तव में ऐसा करने की कोशिश की, पर उससे कोई ख़ास फ़र्क नहीं पड़ा। उसके बाद हम धीरे-धीरे एक-दूसरे से दूर होते चले गए। कुछ समय बाद हमारे बीच लहलहाता प्रेम का वृक्ष सूख चुका था, मृतप्रायः हो चुका था। एक वक़्त ऐसा आया जब हम दोनों सहमत हो गए कि हमारी शादी ख़त्म हो चुकी है और हमें अलग हो जाना चाहिए।’
‘मेरी आख़िरी शादी ? मुझे ऐसा लगता था कि यह बिलकुल अलग होगी। मेरा तलाक़ हुए तीन साल हो चुके थे। हमने दो सालों तक एक-दूसरे के साथ डेटिंग की। मुझे सचमुच लग रहा था कि हम दोनों एक-दूसरे को पूरी तरह समझ चुके थे और शायद पहली बार मैं प्रेम का मतलब समझ रहा था। मेरा दिल कह रहा था कि वह मुझसे बेपनाह मुहब्बत करती है।
‘शादी के बाद मुझे नहीं लगा कि मुझमें कोई बदलाव आया था। मैं उससे पहले की तरह प्रेम का इज़हार करता रहा। मैं पहले की तरह उसकी सुंदरता की तारीफ़ करता रहा, यह बताता रहा कि मैं उससे कितना ज़्यादा प्यार करता था, कि मुझे उसका पति होने में गर्व का अनुभव होता है। पर शादी के कुछ महीनों बाद ही उसने शिकायत करना शुरू कर दिया–पहले तो छोटी-छोटी बातों पर–जैसे घर का कचरा बाहर नहीं फेंकने या अपने कपड़े नहीं टाँगने पर। बाद में उसने मेरे चरित्र पर उँगली उठाना शुरू कर दी और यह भी कहा कि उसका मुझ पर से भरोसा उठ गया है। उसने मुझ पर यह आरोप भी लगाया कि मैं उसके प्रति वफ़ादार नहीं था। उसका व्यक्तित्व अब पूरी तरह नकारात्मक हो गया था, जबकि शादी से पहले वह जरा भी नकारात्मक नहीं थी। उस समय वह बहुत सकारात्मक थी। उसके इसी गुण ने मुझे उसके इतने क़रीब ला दिया था। तब वह कभी किसी विषय पर शिकायत नहीं करती थी, कभी आलोचना नहीं करती थी। शादी से पहले मैं जो भी करता था, उसे बेहतरीन लगता था, पर शादी के बाद मैं जो भी करता था उसमें वह कमी ढूँढ़ ही लेती थी। मैं नहीं जानता कि क्या हुआ ? पर आख़िरकार उसके प्रति मेरा प्रेम धीरे-धीरे ख़त्म हो गया और नफ़रत में बदल गया। जाहिर था कि मेरे प्रति उसका प्रेम पहले ही ख़त्म हो चुका था। हम दोनों सहमत थे कि हमारे एक साथ रहने से अब कोई फ़ायदा नहीं है, इसलिए हम अलग हो गए।
‘यह एक साल पहले की बात है। अब मेरा सवाल यह है कि शादी के बाद हमारे प्रेम का क्या हुआ ? क्या जो मेरे साथ हुआ है वह सभी के साथ होता है ? क्या इसी कारण हमारे देश में इतने ज़्यादा तल़ाक होते हैं ? मुझे यक़ीन नहीं होता कि ऐसा मेरे साथ तीन बार हुआ। और वे लोग जिनके तलाक़ नहीं होते क्या वे बिना प्रेम के जीना सीख लेते हैं या कई शादियों में प्रेम वाक़ई ज़िंदा रह पाता है ? अगर शादी के बाद भी प्रेम बचा रह सकता है तो कैसे ?’’
हवाई जहाज़ में बैठा दोस्त मुझसे जो सवाल पूछ रहा था वह सवाल आज हज़ारों तलाक़शुदा लोग पूछ रहे हैं ? कुछ अपने दोस्तों से यह सवाल पूछ रहे हैं, कुछ परामर्शदाताओं तथा धर्मगुरुओं से और कुछ अपने आप से। कई बार जवाब मनोवैज्ञानिक शोध की तकनीकी शब्दावली में लिपटे होते हैं और उन्हें समझना लगभग असंभव होता है। कई बार जवाब मज़ाक़ में या कहावतों में दिए जाते हैं। ज़्यादातर जवाब चुटकुलों और कहावतों में दिए जाते हैं और इनमें कुछ हक़ीक़त तो निश्चित रूप से होती है पर यह उसी तरह की बात हो गई जैसे हम कैंसर से पीड़ित मरीज को एस्पिरीन दे दें।
शादी में रोमांस और प्रेम की आकांक्षा की जड़ हमारी मनोवैज्ञानिक संरचना में होती है। लगभग सभी लोकप्रिय पत्रिकाओं के हर संस्करण में कम से कम एक लेख इसी विषय पर होता है कि विवाह में प्रेम को ज़िंदा कैसे रखा जाए ?
इस विषय पर ढेरों पुस्तकें भी छप चुकी हैं। टेलीविज़न और रेडियो पर इस बारे में नियमित रूप से कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं। इस सबसे हम यह सहज अनुमान लगा सकते हैं कि हमारी शादियों में प्रेम की ज़िंदा रखना एक गंभीर समस्या है, और यह अकेले हमारी समस्या नहीं है बल्कि आधुनिक समाज की एक प्रमुख समस्या है।
ऐसा क्यों है कि इतनी सारी पुस्तकों, पत्रिकाओं और व्यावहारिक सहायता के बावज़ूद बहुत कम लोगों को यह रहस्य पता है कि विवाह के बाद प्रेम को ज़िंदा कैसे रखा जाए ? ऐसा क्यों होता है कि एक दंपति किसी कम्युनिकेशन वर्कशॉप में भाग लेने जाते हैं, वहाँ पर प्रेम बढ़ाने के अद्भुत नुस्ख़ों को सुनते हैं परंतु घर लौटने पर वे यह महसूस करते हैं कि वे इन नायाब नुस्ख़ों और अद्भुत तकनीकों को अपनी ज़िंदगी में नहीं उतार सकते ? ऐसा क्यों होता है कि हम एक पत्रिका में छपे लेख ‘अपने जीवनसाथी के प्रति प्रेम अभिव्यक्त करने के 101 तरीक़े’ में से दो या तीन तरीक़े चुनते हैं जो हमें ख़ास तौर पर असरदार लगते हैं, उन्हें अपनाने की कोशिश करते हैं पर इतना सब करने के बावजूद हमारे जीवनसाथी को हमारी कोशिश का पता तक नहीं चलता ? इस दुर्घटना के बाद हम बाक़ी 98 तरीक़ों को ज्यों का त्यों छोड़ देते हैं और ज़िंदगी पहले की तरह ही चलती रहती है।
अगर हमें प्रेम में प्रभावी वक्ता बनना है तो अपने जीवनसाथी की प्राथमिक प्रेम भाषा सीखने के लिए तैयार रहना चाहिए।
इन सवालों का जवाब ढूँढ़ना ही इस पुस्तक का लक्ष्य है। ऐसा नहीं है कि पहले जो पुस्तकें या लेख छपे हैं, वे इस दिशा में मदद नहीं करते। हमारी समस्या यह है कि हम इस मूलभूत सत्य को नज़र अंदाज़ कर देते हैं कि लोग अलग-अलग प्रेमभाषाएँ बोलते हैं।
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